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प्यार कभी भी रोमांस नहीं हो सकता

प्यार कभी भी रोमांस नहीं हो सकता
Written by Medhaavi Mishra

प्यार कभी भी रोमांस नही हो सकता ।

प्यार का मतलब रोमांस नहीं होता इसको समझना और समझाना जरूरी है क्योंकि आज नई जनरेशन ने प्यार को गलत तरीके से इस्तेमाल कर अपना आज और कल दोनों खराब कर लिया है ।

माता अपने बच्चों से, गुरु अपने शिष्यों से और बहन अपने भाई से प्यार करती है। क्या उस समय सोंच और जो नजरियाँ रहता है।

वह अच्छी सोच को हर समय साथ रखने की आवश्यकता है , क्योंकि सही सोंच एक लडके और लडकी की दोस्ती को कभी भी गलत अंजाम नही दे सकती है. प्यार और रिश्तों पर कभी भी गलत सोंच हावी नही होने देना चाहियें।

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इसमें हमारी संस्कृति , हमारा रहन सहन , हमारा माहोल, परिवार का साथ , शिक्षक का अनुभव कभी भी हमे गलत या भ्रमित नही होने देगा।  परिवार को अपने बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान देना आवश्यक है न केवल लडकी वरन लड़का भी गलतियाँ कर रहा है तो सही समय पर उसे दोस्त की तरह मार्गदर्शित करते रहें।

kya pyar romance ho sakta h

किसी ने सच ही कहा है की “ ढाई अक्षर प्रेम का पड़े सो पंडित होय ” अर्थात रोमांस से परे प्यार होता है।

मुर्ख लोगों ने रोमांस को प्यार का नाम दिया है। प्यार की पवित्रता और गहराई को हमे समझना होगा और हम ही दिशा भ्रमित युवा पीढ़ी को सही रास्ते पर ला सकते है।

आज की नई टेक्नोलॉजी ने इसे ऒर ख़राब कर दिया है गलती हम टेक्नोलॉजी को नही दे रहे गलती हमारी ही है। इस टेक्नोलॉजी का गलत उपयोग करना हम सीख रहे है या सीखा रहे है जो की इसका हम शत प्रतिशत स्वयं को ज़िम्मेदार मानते है ।

प्यार एक प्रक्रिया है, इसका हमारे खाली जीवन में खुशियों का खजाना है, सबसे रहस्यमय ऒर मनोविज्ञान शक्तिशाली बंधन ही प्यार का पर्याय है और यह तभी सम्भव है जब प्यार रोमांस से परे है ।अर्थात प्यार का तल काफी ऊचा है।

प्यार भगवान है इस पवित्र शब्द का अनायास ही गलत अर्थ और गलत उपयोग होने लगा है। हमारे पूर्वज और ऋषी मुनियों ने इस प्यार की ताकत से जीवन व स्वयम को आलोकित कर महान ग्रन्थ और अविश्वनीय कार्य सम्पूर्ण किये है।

प्यार हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में एक आंतरिक प्रकाश के साथ वास्तविकता चमक को निरंतर प्रवाहित करता है ।

कभी कभी उलटा भी हो सकता है की दुर्घटना ग्रस्त हो जाते है तब रिश्तों के आंसू प्यार को फीका कर देते है.प्यार कतई भी मोह नही होता है ।

प्यार के “मैं, मुझे, और मेरा.” शब्दों के समावेश अहंकार को जन्म दे देते है दुनिया के ज्ञान परंपरा में “प्यार” और “आत्म” दोनों सार्वभौमिक हैं।

वे व्यक्ति के व्यक्तित्व से परे मौजूद हैं ।  प्यार का रहस्य अपनी अंतर्ज्योति और अंतरात्मा के सुख में ही निहित है और हम आज की चका चोंध में इसे बहार तलाशते रहते है।

कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने भी प्यार के आध्यात्मिक पक्ष में वर्णित सार को बताया, प्यार केवल वास्तविकता है और यह एक मात्र भावना नहीं है. यह परम सत्य है कि सृष्टि के दिल में निहित है।

 “मानव जागरूकता का उपहार है कि हम अपने आप में निर्माण के स्रोत का पता लगा सकते हैं. स्वयं से स्वयं के बारे में पूछते है । “मैं कौन हूँ?”

प्यार समर्पण, भक्ति, निस्वार्थता, ही है, आभार, प्रशंसा, दयालुता और आनंद भी इसमें शामिल हैं । फर्क है तो हमारी सोंच व समझ का तो अगर वाक्यांश “सार्वभौमिक प्रेम ” आप के लिए कठिन या असंभव लगता है, यह इन छोटे अनुभव में नीचे तोड़ने उन्हें आगे बढ़ाना है, और आप अपने स्रोत, जहां सच्चे आत्म और सच्चा प्यार विलय की दिशा में यात्रा होगी ।

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Medhaavi Mishra