Hindi Swami Vivekanand

सच्ची शिक्षा के संबंध में स्वामी विवेकानंद जी के महान विचार

सच्ची शिक्षा के संबंध में स्वामी विवेकानंद जी के महान विचार swami vivekanand देश की वर्तमान व भविष्य में आने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये हमें अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने की अति आवश्यकता है। हमें ऐसी वर्तमान शिक्षा की आवश्यकता है जो समय के अनुकूल हो। हमारी दुर्दशा का मूल कारण वह नकारात्मक शिक्षा प्रणाली है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल क्लर्क पैदा करने की मशीनरी मात्र है, यदि केवल यह इसी प्रकार की होती है तो भी मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ। किन्तु इस दूषित शिक्षा प्रणाली द्वारा शिक्षित भारतीय युवक अपने पिता, अपने पूर्वजों, अपने इतिहास एवं अपनी संस्कृति से घृणा करना सीखता है। यहाँ तक की पवित्र वेदों, पवित्र गीता को थोथा एवं झूठा समझने लगता है। अपने अतीत, अपनी संस्कृति पर गौरव करने के बदले वह उनसे घृणा करने लगता है और विदेशियों की नकल करने में ही गौरव का दुष्प्रभाव करता है। सच्ची शिक्षा कई वर्षों की इस दूषित शिक्षा प्रणाली का दुष्प्रभाव स्पष्ट दिखता है कि यह शिक्षा एक भी यथार्थ व्यक्त्तिव के निर्माण में सफल नहीं रही है। ऐसी शिक्षा का महत्व ही क्या जो हमें केवल परतन्त्र बनने का मार्ग दिखाती है। जो हमारे गौरव, स्वावलंबन एवं आत्म-विश्वास का हरन करती है। जिसे पाकर हम स्वतन्त्र रूप से कुछ भी करने में असमर्थ रहते हैं। जिसे पाकर हमें नौकरियों के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। बी.ए. , एम. ए., बी. एस.सी, इंजिनियरिंग व मास्टर डिग्री तक प्राप्त करने के बाद भी युवक स्वतन्त्र रूप से अपनी आजीविका नहीं कमा सकता। सच्ची शिक्षा कुछ परीक्षायें पास कर लेना या धुआंधार व्याख्यान देने की शक्ति प्राप्त कर लेना ही शिक्षित हो जाना नहीं कहलाता। शिक्षा वह है जिसके बल से लोगों को जीवन संग्राम के लिए समर्थ किया जा सके। पोथियाँ पढ़ लेना शिक्षा नहीं है। न ही अनेक प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने का नाम शिक्षा है। शिक्षा तो वह है जिसकी सहायता से इच्छा शक्ति का वेग और स्फूर्ति अपने वश में हो जाये और जिससे अपने जीवन के उद्देश्य पूर्ण हो सकें। शिक्षा का मतलब अपने दिमाग में सूचनाओं एवं जानकारियों को भरना नहीं है। बल्कि जानकारियों को सही उपयोग करना ही शिक्षा है। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को व्यावहारिक बनाना है। जो शिक्षा व्यावहारिक नहीं है वह व्यर्थ है। कुछ शब्दों को पढ़ लिखना शिक्षा नहीं है। शिक्षा का मतलब व्यक्तियों को इस तरह से संगठित करने से है जिससे उनके विचार अच्छाई, व लोगों की भलाई के लिए दौड़े और वे अपने कार्य को पूर्ण कर सकें। जो वर्तमान शिक्षा हमें चरित्र-बल, आत्म-विश्वास, संघर्ष-शक्ति और सिंह के समान सहास प्रदान करने में असमर्थ हैं तो वह शिक्षा व्यर्थ है। सच्ची शिक्षा वह प्रशिक्षण है जिसके द्वारा विचारधारा एवं भावाभिव्यक्ति को नियोजित, नियमित एवं कल्याणकारी बनाया जा सके । सच्ची शिक्षा तो वह है जो मनुष्य बुद्धि एवं दृष्टिकोण को विकसित कर व्यापक बना सके । सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति में न्यायप्रियता, सत्यप्रियता एवं कार्य दक्षता उत्पन्न कर सके। सच्ची शिक्षा का लक्ष्य ही मनुष्य के व्यक्त्तिव व यथार्थ मानव का निर्माण करना होता है। हमें ऐसी शिक्षा की जरूरत है जिससे चरित्र निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े, बुद्धि विकसित हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे। हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जिससे की व्यक्ति अपनी आर्थिक जरूरत पूरी कर सके । ऐसी शिक्षा जो दूसरों के बारे में अच्छा सोचने और करने को कहती हो। ऐसी शिक्षा की जरूरत है जिसका अनुसरण करने से व्यक्ति अपने परिवार, समाज व देश का गौरव बढ़ा सके। आज हमारे देश के युवाओं को सबसे अधिक किसी चीज की आवश्यकता है तो वह है लोहे की मांसपेशियां और स्टील की नर्व्स (फौलाद के स्नायु )। युवाओं को ऐसी प्रचंड इच्छा शक्ति की आवश्यकता है जिसका अवरोध दुनिया की कोई ताकत न कर सके। एसी सोच और दृण विश्वास की जो संसार के हर गुप्त तथ्यों और रहस्यों को भेद सके और जिस उपाय से भी हो अपने लक्ष्य की पूर्ती करने में समर्थ हो, फिर चाहे समुद्र की अथह गहराई में ही क्यों न जाना पड़े या फिर साक्षात मृत्यु का ही सामना ही क्यों न करना पड़े। हमें अपने देश की आध्यात्मिक शिक्षा और सभी प्रकार की ऐतिहासिक शिक्षा अपने हाथ में लेनी होगी और उस शिक्षा में भारतीय शिक्षा की सनातन गति स्थिर रखनी होगी। अगर आप चाहते हो कि आपके बेटे भी महान बनें तब आपके घर में महिलाओं का शिक्षित होना अति आवश्यक है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली मनुष्यत्व की शिक्षा नहीं देती है, गठन नहीं करती और बस वह तो एक बनी बनाई चीज को तोड़ना-फोड़ना जानती है। ऐसी शिक्षा जो अस्थिरता और नेतिभाव को फैलाती है किसी काम की नहीं है। दिमाग में अनेक तरह का ज्ञान भर लेना, उससे कुछ काम न लेना और जन्म भर वाद-विवाद करते रहने का नाम शिक्षा नहीं है। अच्छे आदर्श और अच्छे भावों को काम में लाकर लाभ उठाना चाहिए, जिनसे वास्तविक मनुष्यत्व चरित्र और जीवन बन सके। किसी से किसी प्रकार की बहस मत करो। यदि तुम किसी को कुछ सिखाना चाहते हो सिखाओ और किसी बात में मत उलझो। औरों को अपनी-अपनी धुन में मस्त रहने दो। संसार में जितने शास्त्र हैं, उनमें केवल वेद ही यह कहता है कि वेद पाठ करना भी अपरा विद्या के अन्तर्गत है। पर विद्या वह है, जिसके द्वारा अक्षर पुरुष को जाना जाये। और वह पढ़ने से नहीं जाना जा सकता, विश्वास करने से नहीं जाना जा सकता, तर्क करने से भी नहीं जाना जा सकता। समाधि अवस्था प्राप्त करने पर ही उस परम पुरुष को जाना जा सकता है।
Written by Medhaavi Mishra

सच्ची शिक्षा के संबंध में स्वामी विवेकानंद जी के महान विचार

देश की वर्तमान व भविष्य में आने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये हमें अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने की अति आवश्यकता है।

  • हमें ऐसी वर्तमान शिक्षा की आवश्यकता है जो समय के अनुकूल हो।
  • हमारी दुर्दशा का मूल कारण वह नकारात्मक शिक्षा प्रणाली है।
  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल क्लर्क पैदा करने की मशीनरी मात्र है, यदि केवल यह इसी प्रकार की होती है तो भी मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ।
             किन्तु इस दूषित शिक्षा प्रणाली द्वारा शिक्षित भारतीय युवक अपने पिता, अपने पूर्वजों, अपने इतिहास एवं अपनी संस्कृति से घृणा करना सीखता है।
    यहाँ तक की पवित्र वेदों, पवित्र गीता को थोथा एवं झूठा समझने लगता है।
  • अपने अतीत, अपनी संस्कृति पर गौरव करने के बदले वह उनसे घृणा करने लगता है और विदेशियों की नकल करने में ही गौरव का दुष्प्रभाव करता है।

सच्ची शिक्षा 

  • कई वर्षों की इस दूषित शिक्षा प्रणाली का दुष्प्रभाव स्पष्ट दिखता है कि यह शिक्षा एक भी यथार्थ व्यक्त्तिव के निर्माण में सफल नहीं रही है।
  • ऐसी शिक्षा का महत्व ही क्या जो हमें केवल परतन्त्र बनने का मार्ग दिखाती है। जो हमारे गौरव, स्वावलंबन एवं आत्म-विश्वास का हरन करती है।
  • जिसे पाकर हम स्वतन्त्र रूप से कुछ भी करने में असमर्थ रहते हैं।
              जिसे पाकर हमें नौकरियों के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। बी.ए. , एम. ए.,
     बी. एस.सी, इंजिनियरिंग व मास्टर डिग्री तक प्राप्त करने के बाद भी युवक स्वतन्त्र रूप से अपनी आजीविका नहीं कमा सकता।

सच्ची शिक्षा

  • कुछ परीक्षायें पास कर लेना या धुआंधार व्याख्यान देने की शक्ति प्राप्त कर लेना ही शिक्षित हो जाना नहीं कहलाता।
            शिक्षा वह है जिसके बल से लोगों को जीवन संग्राम के लिए समर्थ किया जा सके।
  • पोथियाँ पढ़ लेना शिक्षा नहीं है। न ही अनेक प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने का नाम शिक्षा है।
                 शिक्षा तो वह है जिसकी सहायता से इच्छा शक्ति का वेग और स्फूर्ति अपने वश में हो जाये और जिससे अपने जीवन के उद्देश्य पूर्ण हो सकें।
  • शिक्षा का मतलब अपने दिमाग में सूचनाओं एवं जानकारियों को भरना नहीं है। बल्कि जानकारियों को सही उपयोग करना ही शिक्षा है।
         शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को व्यावहारिक बनाना है। जो शिक्षा व्यावहारिक नहीं है वह व्यर्थ है।
  • कुछ शब्दों को पढ़ लिखना शिक्षा नहीं है। शिक्षा का मतलब व्यक्तियों को इस तरह से संगठित करने से है जिससे उनके विचार अच्छाई, व लोगों की भलाई के लिए दौड़े और वे अपने कार्य को पूर्ण कर सकें।
  • जो वर्तमान शिक्षा हमें चरित्र-बल, आत्म-विश्वास, संघर्ष-शक्ति और सिंह के समान सहास प्रदान करने में असमर्थ हैं तो वह शिक्षा व्यर्थ है।

   सच्ची शिक्षा वह प्रशिक्षण है जिसके द्वारा विचारधारा एवं भावाभिव्यक्ति को नियोजित, नियमित एवं कल्याणकारी बनाया जा सके ।

  • सच्ची शिक्षा तो वह है जो मनुष्य बुद्धि एवं दृष्टिकोण को विकसित कर व्यापक बना सके ।
  • सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति में न्यायप्रियता, सत्यप्रियता एवं कार्य दक्षता उत्पन्न कर सके।
  • सच्ची शिक्षा का लक्ष्य ही मनुष्य के व्यक्त्तिव व यथार्थ मानव का निर्माण करना होता है।
  • हमें ऐसी शिक्षा की जरूरत है जिससे चरित्र निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े, बुद्धि विकसित हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे।
  • हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जिससे की व्यक्ति अपनी आर्थिक जरूरत पूरी कर सके । ऐसी शिक्षा जो दूसरों के बारे में अच्छा सोचने और करने को कहती हो।
  • ऐसी शिक्षा की जरूरत है जिसका अनुसरण करने से व्यक्ति अपने परिवार, समाज व देश का गौरव बढ़ा सके।
  • आज हमारे देश के युवाओं को सबसे अधिक किसी चीज की आवश्यकता है तो वह है लोहे की मांसपेशियां और स्टील की नर्व्स (फौलाद के स्नायु )।
  • युवाओं को ऐसी प्रचंड इच्छा शक्ति की आवश्यकता है जिसका अवरोध दुनिया की कोई ताकत न कर सके।
  • एसी सोच और दृण विश्वास की जो संसार के हर गुप्त तथ्यों और रहस्यों को भेद सके और जिस उपाय से भी हो अपने लक्ष्य की पूर्ती करने में समर्थ हो, फिर चाहे समुद्र की अथह गहराई में ही क्यों न जाना पड़े या फिर साक्षात मृत्यु का ही सामना ही क्यों न करना पड़े।
  • हमें अपने देश की आध्यात्मिक शिक्षा और सभी प्रकार की ऐतिहासिक शिक्षा अपने हाथ में लेनी होगी और उस शिक्षा में भारतीय शिक्षा की सनातन गति स्थिर रखनी होगी।
  • अगर आप चाहते हो कि आपके बेटे भी महान बनें तब आपके घर में महिलाओं का शिक्षित होना अति आवश्यक है।
  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली मनुष्यत्व की शिक्षा नहीं देती है, गठन नहीं करती और बस वह तो एक बनी बनाई चीज को तोड़ना-फोड़ना जानती है। ऐसी शिक्षा जो अस्थिरता और नेतिभाव को फैलाती है किसी काम की नहीं है।
  • दिमाग में अनेक तरह का ज्ञान भर लेना, उससे कुछ काम न लेना और जन्म भर वाद-विवाद करते रहने का नाम शिक्षा नहीं है।
  • अच्छे आदर्श और अच्छे भावों को काम में लाकर लाभ उठाना चाहिए, जिनसे वास्तविक मनुष्यत्व चरित्र और जीवन बन सके।
  • किसी से किसी प्रकार की बहस मत करो। यदि तुम किसी को कुछ सिखाना चाहते हो सिखाओ और किसी बात में मत उलझो। औरों को अपनी-अपनी धुन में मस्त रहने दो।
  • संसार में जितने शास्त्र हैं, उनमें केवल वेद ही यह कहता है कि वेद पाठ करना भी अपरा विद्या के अन्तर्गत है। पर विद्या वह है, जिसके द्वारा अक्षर पुरुष को जाना जाये।                                                                
  •  और वह पढ़ने से नहीं जाना जा सकता, विश्वास करने से नहीं जाना जा सकता, तर्क करने से भी नहीं जाना जा सकता। समाधि अवस्था प्राप्त करने पर ही उस परम पुरुष को जाना जा सकता है।

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